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केष्टो मुखर्जी जिन्होंने कभी शराब नहीं पी / दीपक अम्बष्ट |
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केष्टो मुख़र्जी के जीवन के कुछ खास अलग पहलू |
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फिल्मों में शराबी के रोल ने दिलाई पहचान लेकिन रियल लाइफ में कभी नहीं पीते थे शराब.../ दीपक अम्बष्ठ |
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भारतीय सिनेमा में कई कॉमेडियन ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से दर्शकों को खूब हंसाया. इनमें से एक कॉमेडियन केष्टो मुखर्जी भी थे जो गुजरे ज़माने की तकरीबन हर दूसरी फिल्म में नज़र आकर दर्शकों को अपनी कॉमेडी से हंसाकर चले जाते हैं और दर्शक उनसे अभिभूत हुए बिना रह नह |
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अगर बॉलीवुड फिल्मों में किसी शराबी कैरेक्टर के बारे में सोचें तो यकीनन आपके जेहन में एक ही चेहरा और नाम उभरेगा। वो है केष्टो मुखर्जी। उन्होंने दर्जनों फिल्मों में शराबी के रोल इस कदर परफेक्शन के साथ निभाए कि फिल्म मेकर उनकी जगह किसी दूसरे कलाकार को फिल्म |
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केष्टो मुखर्जी ने पहली बार फिल्म मां और ममता में शराबी की भूमिका निभाकर सबका ध्यान खींचा था. यह फिल्म 1970 में रिलीज हुई थी. इसके बाद वह बॉम्बे टू गोवा, पड़ोसन , चुपके-चुपके आदि कई फिल्मों में भी नज़र आए। |
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केष्टो ज्यादातर फिल्मों में केवल शराबी के किरदार में ही नजर आते थे. अपने 30 साल लंबे फ़िल्मी करियर में उन्होंने तकरीबन 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इनमें से ज्यादा फिल्मों में वह केवल शराबी के रोल में ही दिखाई दिए. वैसे आपको |
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1950 से 80 के दशक तक उन्होंने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, लेकिन इतनी फिल्में करने के बावजूद उनकी अदाकारी को वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। अपने 3 दशक से ज्यादा के करियर में उन्हें महज एक फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। केष्टो मुखर्जी के बारे में दो |
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उनके बेटे का नाम बबलू मुखर्जी है, उन्होंने अपने पिता के बारे में कुछ जानकारी दी।बबलू बोले- पापा फिल्मों में तो कॉमेडी करते थे, लेकिन रियल लाइफ में वो अपनी फिल्मी इमेज से कोसों दूर थे। वो बेहद स्ट्रिक्ट थे और उन्हें देखकर मैं और मेरे भाई की तो सिट्टी-पिट्ट |
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शूटिंग से वक्त निकालकर वो जब भी घर पर होते थे तो हमें होमवर्क करवाते थे। कुकिंग का शौक था तो खाना भी बनाते थे। उन्हें बंगाली क्विजीन जैसे माछेर झोल वगैरह बेहद पसंद था। उन्होंने तो हमारी मां को भी कुकिंग सिखाई थी। उनकी एक खास बात ये भी थी कि वो कभी अपने का |
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वो घर में एक आम इंसान ही थे, कोई एक्टर नहीं। वो घर में फिल्मों की कोई बात नहीं करते थे। हम बचपन में उनकी फिल्मों के सेट पर कभी गए या नहीं, मुझे तो ये भी याद नहीं है, क्योंकि ऐसा शायद कभी हुआ ही नहीं। |
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यही वजह रही कि पापा के निधन के बाद हमें असली मायनों में ये पता चला कि वो कितने बड़े एक्टर थे और लोग उनकी अदायगी के कितने कायल थे। वो बेहद सादगी पसंद थे और अगर कभी काम के सिलसिले में विदेश भी जाते थे तो वहां से कोई चीज ना परिवार के लिए खरीदते थे और ना ही खु |
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वो सिर्फ एक ब्रीफकेस लेकर जाते थे और वही लेकर वापस आ जाते थे। इस वजह से मेरी मां को उनकी सहेलियां चिढ़ाती भी थीं कि उनके लिए पापा कभी विदेश से कोई गिफ्ट लेकर नहीं आते। |
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जब शेखों ने खुश होकर केष्टो मुखर्जी को पहना दी सोने की चेन |
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मेरे पिता पहले ऐसे स्टार थे जिन्हें दुबई में रेड कारपेट वेलकम मिला था। वहां एक स्टेज परफॉर्मेंस के दौरान पापा ने अपने चिरपरिचित स्टाइल में कई एक्ट किए जिससे लोग उनके दीवाने हो गए। कई शेखों ने अपने गले से सोने की चेन निकालकर पापा के गले में पहना दी। ये सोन |
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उन्होंने फिर सबसे गुजारिश करते हुए कहा कि जिन्होंने भी सोने की चेन उनके गले में डाली है वो वापस ले लें। ये सुनकर उनके साथियों ने कहा कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? तो पापा बोले कि मैं इन्हें लेकर एयरपोर्ट पर घंटों खड़े नहीं रह सकता। मैं नहीं चाहता कि कस्टम अध |
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एक बार की बात है। जब हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और हम जुहू में 1 BHK वाले किराए के घर में रहते थे। मेरी मां को टीवी देखना पसंद था तो वो पड़ोसी के घर अक्सर टीवी देखने चली जाती थीं। एक दिन पड़ोसी ने उन्हें घर आने से मना कर दिया। मां इस बात से उदास हो ग |
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देह व्यापार या वेश्या वृति |